मंगलवार, 28 जून 2016

Rape के नाम पर... पनप रही ये प्रवृत्त‍ि सबके लिए घातक

खबरों की एडिटिंग करते समय कई ऐसी खबरें सामने से गुजरती हैं जो यह सोचने पर विवश कर देती हैं कि महिलाओं को लेकर सरकार के बनाए कानून का पालन करना और करवाना जितना जरूरी है उतना ही जरूरी है उसके दुरुपयोग को रोकना भी। यूं तो 16 दिसंबर 2012 को हुए जघन्य सामूहिक बलात्कार कांड के बाद से ही बलात्कारि‍यों  के लिए सख्त कानून बना, समाज में भी इसे लेकर जागरूकता बढ़ी और अब महिलायें इस पर खुलकर सामने भी आ रही हैं। इसी जागरूकता और खुलेपन की आड़ में कुछ ऐसा घटित हो रहा है जो इस मुहिम को ग्रे शेड दे रहा है।    
बलात्कार एक ऐसा शब्द है जो शरीर से ज्यादा आत्मा का ध्वंस कर देता है, फिर अगर महिला या बच्ची सामूहिक बलात्कार की शि‍कार हो जाए तो उस पर क्या गुजरती होगी, इसे तो स्वयं भुक्तभोगी भी शब्दों में शायद ही बयां कर पाए। इस शरीर और मन के कष्ट में उसके साथ-साथ उसका परिवार भी कष्ट भोगता है और किसी भी ऐसे कष्ट का कोई मूल्य नहीं लगाया जा स‍कता मगर जिस तरह सामूहिक बलत्कार की घटना को भी मुआवजे में भुनाने की प्रवृत्त‍ि देखने को मिल रही, व‍ह न सिर्फ रेप विक्टिम के प्रति सहानुभूति खत्म कर देगी बल्कि उन्हें फिर गंभीरता से लेना भी बंद किया जा सकता है।

महिलाओं के प्रति इस 'बलात्कार के राक्षस' से पहले 'दहेज का राक्षस' भी ऐसे ही पनपा था जिसने तमाम घर उजाड़ दिए, बेटियों-बहुओं के सामने दांपत्य को ज़हर बनाकर पेश किया। इसके उदाहरण हर तीसरे चौथे घर में देखने व सुनने को मिल जाते थे। इस ज़हर को फैलाने की शुरुआत तो दहेजलोभ‍ी ससुरालीजनों ने की मगर उनका साथ ऐसे माता-पिताओं ने भी दिया जो ''अच्छा सा दहेज'' देकर बेटी को ''अच्छे से घर'' में ब्याहना चाहते थे। दहेज प्रथा, कुप्रथा में ऐसी बदली कि फिर इससे निपटने को बनाए गए कानून का बहुत से मायके वालों द्वारा भरपूर दुरुपयोग किया गया। इसी कानून के नाम पर कभी मन नहीं मिलने तो कभी धन नहीं मिलने पर नाइत्त‍िफाकी की सजा अकेली बहू ने ही नहीं भुगती, बल्कि सास-ननद-देवरानी-जिठानी को भी मिली। आज भी कानून के दुरुपयोग की भुक्तभोगी अनेक सासें-ननदें बेवजह ही जेल और नारी निकेतनों में सड़ रही हैं। 

इसी तरह बलात्कार को लेकर भी हाल ही में कुछ ऐसी घटनाएं ''सहानुभूति के दुरुपयोग की'' और ''उससे लाभ उठाने की'' सामने आई हैं जिन्होंने हमारे लिए बनाए गए कानून और समाज में बलात्कार के दंश का मजाक सा बनाकर रख दिया।

एक घटना की बानगी देख‍िए- जब 20 साल तक यौन शोष‍ित होती रही महिला अचानक अपने नारीत्व को लेकर च‍िंतित हो उठती है और फटाफट आरोप उस व्यक्ति पर जड़ देती है जिससे उसे ''कोई भी'' लाभ उठाना होता है और जिसे वह ''यौन शोष‍ित'' रहते हुए नहीं उठा पाई।
सवाल उठता है कि क्या इतने सालों तक उसे भान नहीं हुआ कि वह शोष‍ित हो रही है।

ऐसा ही उदाहरण कल तब एक खबर में सामने आया जब Rape victim वाले बयान को लेकर अभ‍िनेता सलमान खान से हरियाणा के हिसार की एक गैंगरेप पीड़िता ने अपने वकील के ज़रिए 10 करोड़ रुपए मुआवजा मांगा है। मुआवजे की वजह इतनी बेसिरपैर की है कि इसे सिर्फ लाइमलाइट में आने का एक स्टंट ही कहा जा सकता है ।
इस रेप विक्टिम ने कहा कि सलमान के इस बयान से उसे मानसिक आघात पहुंचा है। पीड़िता ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के माध्यम से भेजे गए नोटिस में कहा है कि उनकी इस सार्वजनिक टिप्पणी से उसकी छवि धूमिल हुई है। शिकायतकर्ता ने बताया कि अभिनेता के बयान से उसे गहरी चोट लगी है, और वह अभी भी एक मानसिक और शारीरिक आघात से गुजर रही है। खबरों के मुताबिक नाबालिग दलित लड़की के साथ 8 लड़कों ने गैंगरेप किया था। घटना से आहत 18 सितंबर, 2012 को पीड़िता के पिता ने आत्महत्या कर ली थी।
पीड़िता के वकील ने कहा कि इस कानूनी नोटिस के जरिए मैं मेरे मुवक्किल की ओर से नोटिस प्राप्त होने के  15 दिनों के अंदर 10 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग करता हूं। ऐसा नहीं करने पर सलमान के खिलाफ सिविल और आपराधिक कानून का उल्लंघन का मामला दर्ज कराया जाएगा।

दरअसल सलमान ने एक इंटरव्यू में कहा था कि ‘सुल्तान’ के कुश्ती वाले दृश्यों की शूटिंग करने के बाद इतनी थकान होती थी कि मैं जब चलकर अखाड़े से बाहर आता तो रेप पीड़िता जैसा महसूस होता था, यह बेहद मुश्किल था, मैं कदम आगे नहीं बढ़ा सकता था।निश्च‍ित ही सलमान खान के इस बयान की जितनी भर्त्सना की जाए उतनी कम है, मगर इस तरह 2012 में अपने ऊपर हुए एक जुल्म को कैश किया जाना कहां तक उचित है, व‍ह भी तब जबकि सलमान खान का इस घटना से दूरदूर तक कोई वास्ता नहीं।
अब आप ही बताइये कि क्या यह भी एक बलात्कार नहीं कि जो हमारी सहानुभूतियों और सुधारक सोचों के साथ किया जा रहा है और बलात्कार पीड़‍िताओं का मजाक उउ़ाया जा रहा है, गोया वो बलत्कृत हुईं क्योंकि उन्हें मुआवजा चाहिए था। ऐसे में तो न्याय व्यवस्था भी भुक्तभोगियों के साथ निष्पक्ष नहीं हो पाएगी। 

कुल्हाड़ी पर पैर मारने वाली इस भयंकर प्रवृत्ति से हमें बचना भी है और बलात्कार के लिए बने कानूनों का दुरुपयोग न होने बचाना भी है ताकि दहेज के लिए बने कानून की भांति बलात्कार भी निर्दोंषों को फांसने का साधन न बन जाए।
- Alaknanda singh

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें