शनिवार, 25 मार्च 2017

BITS पिलानी का शोध- वेद , मंत्र और मनोविज्ञान

वेदों की बात करते ही क्‍या हम दक्षिणपंथी हो जाते हैं, क्‍या वेद की बात से नकारात्‍मकता खत्‍म होती है, क्‍या वेदों में जिन मंत्रों का उल्‍लेख है-उनकी बात पिछड़ेपन की मानी जाए...आज इन सबपर सोचने का समय आ गया है जब चारों ओर ऋणात्‍मक ऊर्जा तैर रही हो तब इस संदर्भ में सोचा जाना जरूरी है।

मैथिली शरण गुप्‍त, सुभद्राकुमारी चौहान से लेकर रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी  अनेक कविताओं में देश की स्‍वतंत्रता से पहले निज स्‍वतंत्रता और मन की  स्‍वतंत्रता को चाहे जिस तरह भी व्‍याख्‍यायित किया हो मगर आज तक हम  स्‍वतंत्रता के अर्थ नहीं समझ सके। इसका नतीजा यह कि हमारे ही सबसे पुराने  और वैज्ञानिक प्रयोगों से आच्‍छादित वैदिक कालीन निष्‍कर्षों पर अब फिर से शोध  करने की आवश्‍यकता महसूस होने लगी।
गनीमत यह रही कि विदेशी वैज्ञानिकों की ओर से इसकी शुरुआत की गई वरना  हमारे देश में वैदिक कालीन सभ्‍यता और उसकी वैज्ञानिकता की बात करने वालों  को दक्षिणपंथी, संघी, पोंगापंथी और कथित तौर पर घोषित अल्‍पसंख्‍यकों को  प्रताड़ित करने वाला बताकर उनका अंधविरोध किया जाता है। नकारात्‍मकता की  सारी हदें पार करने वाले हालांकि अपने खाते में ''सिर्फ और सिर्फ बातें'' ही रखते  हैं, कोई ऐसी उपलब्‍धि उनके पास नहीं जो वो वैदिक कालीन वैज्ञानिक प्रयोगों को  झुठला सकें। 

हमारे देश में आक्रमणकारियों ने जितना नुकसान नहीं पहुंचाया उतना तो इन  आयातित सोचों पर पलने वाले कथित बुद्धिजीवियों ने नकारात्‍मक सोच और  विध्‍वंसक दृष्‍टि का प्रचार करके किया है।

मंत्रों पर शोधकार्य की वैदिक कालीन वैज्ञानिक प्रयोगों के संदर्भ में कल हैदराबाद  से एक रिपोर्ट आई। बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (BITS) पिलानी के  हैदराबाद कैम्पस की एक रिसर्च में यह दावा किया गया है कि वैदिक मंत्रों का  जाप करने से छात्रों को पढ़ाई से होने वाले तनाव से निपटने और परीक्षा में  बेहतर अंक मिलने में मदद मिलती है।

इतना ही नहीं, वैदिक मंत्रों के जाप से छात्र मनोवैज्ञानिक और शारीरिक तौर पर  बेहतर होते हैं और उन्हें एकाग्रता बढ़ाने में भी मदद मिलती है।

रिसर्च में हिस्सा ले रहे छात्रों ने 5 मंत्रों का उच्चारण किया जिनमें गायत्री मंत्र  (ऋगवेद से), विष्णु सहस्रनामम (भगवान विष्णु के एक हजार नाम), ललिता  सहस्रनामम (माता के हजार नाम), पुरुष सुक्तम (ब्रह्मांड से जुड़ा मंत्र, ऋग्वेद  से), आदित्य हृदयम (सूर्य देव की स्तुति) शामिल रहे। मंत्रोच्चारण के बाद छात्रों  की सामान्य खुशहाली और बुद्धि की स्पष्टता में बेहतरी दर्ज की गई।

बिट्स पिलानी, हैदराबाद कैम्पस में सोशल साइंस और ह्यूमैनिटी विभाग की डॉ.  अरुणा लोला ने कहा, ‘हमने इस शोध के पहले और बाद में मनोवैज्ञानिक टेस्ट  किया गया। इसमें विषयों को लेकर दिमागी स्पष्टता और सामान्य खुशहाली में  बढ़ोत्तरी देखी गई।
मंत्रोच्चारण एक शक्तिशाली आवाज या वाइब्रेशन है जिसकी मदद से कोई भी  अपने दिमाग को स्थिर रख सकता है।
''ओम'' के उच्चारण से तनाव से राहत मिलती है और याददाश्त भी बढ़ती है।’  यह शोध धर्म और स्वास्थ्य के नए अंक में पब्लिश हुआ है।
डॉक्टर लोला ने बताया, ‘यह शोध मंत्र के प्रयोग और इंसानी दिमाग पर इसके  प्रभाव के साथ ही इसके पीछे के आध्यात्मिक विज्ञान को जानने के मकसद से  किया गया।’

इस रिसर्च पर अभी तक किसी नकारात्‍मक सोच वाले कथित बुद्धिजीवी की कोई  ''प्रगतिवादी'' टिप्‍पणी नहीं आई है, हालांकि मैं इसका इंतज़ार कर रही हूं।

बहरहाल, अभी तक मंत्र चिकित्‍सा से अनेक रोगों का निदान संभव किया जा  चुका है। मंत्र से विविध शारीरिक एवं मानसिक रोगों में लाभ मिलता है। यह बात  अब विशेषज्ञ भी मानने लगे हैं कि मनुष्य के शरीर के साथ-साथ यह समग्र  सृष्टि ही वैदिक स्पंदनों से निर्मित है। शरीर में जब भी वायु-पित्त-कफ नामक  त्रिदोषों में विषमता से विकार पैदा होता है तो मंत्र चिकित्सा द्वारा उसका  सफलता पूर्वक उपचार किया जाना संभव है।

अमेरिका के ओहियो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार कैंसरयुक्त फेफड़ों,  आंत, मस्तिष्क, स्तन, त्वचा और फाइब्रो ब्लास्ट की लाइनिंग्स पर जब सामवेद  के मंत्रों और हनुमान चालीसा के पाठ का प्रभाव परखा गया तो कैंसर की  कोशिकाओं की वृद्धि में भारी गिरावट आई। इसके विपरीत तेज गति वाले  पाश्चात्य और तेज ध्वनि वाले रॉक संगीत से कैंसर की कोशिकाओं में तेजी के  साथ बढ़ोत्तरी हुई।

मंत्र चिकित्सा के लगभग पचास रोगों के पांच हजार मरीजों पर किए गए  क्लीनिकल परीक्षणों के अनुसार दमा, अस्थमा रोग में सत्तर प्रतिशत, स्त्री रोगों  में 65 प्रतिशत, त्वचा एवं चिंता संबंधी रोगों में साठ प्रतिशत, उच्च रक्तदाब,  हाइपरटेंशन से पीड़ितों में पचपन प्रतिशत, आर्थराइटिस में इक्यावन प्रतिशत,  डिस्क संबंधी समस्याओं में इकतालीस प्रतिशत, आंखों के रोगों में इकतालीस  प्रतिशत तथा एलर्जी की विविध अवस्थाओं में चालीस प्रतिशत औसत लाभ हुआ।  निश्चित ही मंत्र चिकित्सा उन लोगों के लिए तो वरदान ही है जो पुराने और  जीर्ण क्रॉनिक रोगों से ग्रस्त हैं।

कहा गया है कि जब भी कोई व्यक्ति गायत्री मंत्र का पाठ करता है तो अनेक  प्रकार की संवेदनाएं इस मंत्र से होती हुई व्यक्ति के मस्तिष्क को प्रभावित करती  हैं। जर्मन वैज्ञानिक कहते हैं कि जब भी कोई व्यक्ति अपने मुंह से कुछ बोलता  है तो उसके बोलने में आवाज का जो स्पंदन और कंपन होता है, वह 175 प्रकार  का होता है। जब कोई कोयल पंचम स्वर में गाती है तो उसकी आवाज में 500  प्रकार का प्रकंपन होता है लेकिन जर्मन वैज्ञानिक यह भी कहते हैं कि दक्षिण  भारत के विद्वानों से जब विधिपूर्वक गायत्री मंत्र का पाठ कराया गया, तो यंत्रों  के माध्यम से यह ज्ञात हुआ कि गायत्री मंत्र का पाठ करने से संपूर्ण स्पंदन के  जो अनुभव हुए, वे 700 प्रकार के थे।

जर्मन वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर कोई व्यक्ति पाठ न भी करे, सिर्फ पाठ  सुन भी ले तो भी उसके शरीर पर इसका प्रभाव पड़ता है। उन्होंने मनुष्य की  आकृति का छोटा सा यंत्र बनाया और उस आकृति में जगह-जगह कुछ छोटी-छोटी  लाइटें लगा दी गईं। लाइट लगाने के बाद यंत्र के आगे लिख दिया कि यहां पर  खड़ा होकर कोई आदमी किसी भी तरह की आवाजें निकालें तो उस आवाज के  हिसाब से लाइटें मनुष्य की आकृति में जलती नजर आएंगी, लेकिन अगर किसी  ने जाकर गायत्री मंत्र बोल दिया तो पांव से लेकर सिर तक सारी की सारी लाइटें  एक साथ जलने लग जाती है। दुनियाभर के मंत्र और किसी भी प्रकार की आवाजें  निकालने से यह सारी की सारी लाइटें नहीं जलतीं। एक गायत्री मंत्र बोलने से सब  जलने लग जाती हैं क्योंकि इसके अंदर जो वाइब्रेशन है, वह अद्भुत है।

हमारे देश के पास इतने आश्‍चर्यजनक वैज्ञानिक प्रयोगों की थाती है और हम  आज भी इनके परिणामों पर यदि संदेह करते हैं तो जिन कवियों ने जिन  स्‍वतंत्रता सेनानियों ने जिन दार्शनिकों ने मन की स्‍वतंत्रता हासिल करने की बात  कही वह सब निरर्थक ही हो जाएगा। हम अपने ही मंत्रों की सार्थकता सिद्ध करने  के लिए औरों पर निर्भर रहें, इससे बड़ी परतंत्रता और क्‍या होगी।
वेदों ने जो मंत्रों की थाती हमें सौंपी है, उस पर हमें गर्व होना चाहिए संशय नहीं।  संशय विवेक को खा जाता है और हमारे कथित बुद्धिजीवी संशयों से ग्रस्‍त रहे हैं  तो उन्‍हें मंत्रों की शक्‍ति-वैज्ञानिकता और उसकी वृहद शक्‍तियों पर विश्‍वास हो भी  तो कैसे।

बहरहाल, हैदराबाद के शोधकार्य ने उनके भी मुंह बंद कर देने का इंतज़ाम कर  दिया जो कहते थे कि मंगलयान से पहले वैज्ञानिकों ने पूजा और अपने-अपने  इष्‍ट देवों का ध्‍यान क्‍यों किया। अब संभवत: वे समझ जाऐं कि मंत्र से  मंगलयान जैसे अभियान को सफलता तक आखिर किस कॉन्‍फीडेंस ने पहुंचाया।
मंत्रों पर अनेकानेक शोधों की आवयश्‍कता है, तभी हम अपनी आने वाली पीढ़ियों  के लिए एक सकारात्‍मक वातावरण बना सकेंगे।

- अलकनंदा सिंह

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें